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मर्ता॒ अम॑र्त्यस्य ते॒ भूरि॒ नाम॑ मनामहे । विप्रा॑सो जा॒तवे॑दसः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

martā amartyasya te bhūri nāma manāmahe | viprāso jātavedasaḥ ||

पद पाठ

मर्ताः॑ । अम॑र्त्यस्य । ते॒ । भूरि॑ । नाम॑ । म॒ना॒म॒हे॒ । विप्रा॑सः । जा॒तऽवे॑दसः ॥ ८.११.५

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:11» मन्त्र:5 | अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:35» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:5


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शिव शंकर शर्मा

ईश्वर की स्तुति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमदेव ! हम मनुष्य यद्यपि (मर्ताः) मरणधर्मी और विनश्वर हैं, तथापि (विप्रासः) तेरे मेधावी स्तुतिपाठक हैं, वे हम (अमर्तस्य) मरणरहित (जातवेदसः) समुद्भूत सर्व पदार्थों के विज्ञाता (ते) तेरे (नाम) अग्नि, इन्द्र, वरुण आदि नामों को (भूरि) बहुत प्रकार से (मनामहे) गाते, मनन करते और विचारते रहते हैं, अतः हमारी रक्षा कीजिये ॥५॥
भावार्थभाषाः - परमात्मवाचक शब्दों को विचारता हुआ उनके अर्थों के अनुकूल अपना आचरण बनावें ॥५॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (मर्ताः) मरणधर्मवाले (विप्रासः) हम विद्वान् (जातवेदसः, अमर्त्यस्य, ते) सब व्यक्त वस्तुओं को जाननेवाले मरणरहित आपके (भूरि, नाम, मनामहे) इन्द्र, वरुण, अग्नि आदि बहुत से नामों को जानते हैं ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र का भाव यह है कि हे परमात्मन् ! हम विद्वान् लोग आपको अजर=बुढ़ापे से रहित, अमर=मरणधर्म से रहित, इन्द्र=सबका पालक, वरुण=सबको वशीभूत रखनेवाला और अग्नि=प्रकाशस्वरूप आदि गुणविशिष्ट जानते हैं ॥५॥
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शिव शंकर शर्मा

ईश्वरस्तुतिः।

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमदेव ! वयं यद्यपि मर्ताः=मरणधर्मिणो विनश्वराः। तथापि विप्रासः=विप्रा मेधाविनस्तव स्तुतिपाठकाः। ते वयम्। अमर्तस्य=मरणरहितस्य। जातवेदसः=जातानां सर्वेषां पदार्थानां विज्ञातुस्ते तव। भूरि=बहुविधम्। नाम। मनामहे=उच्चारणेन विचारयामहे ॥५॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (मर्ताः, विप्रासः) मरणधर्माणो विद्वांसो वयम् (जातवेदसः, अमर्त्यस्य, ते) सर्वस्य ज्ञातुर्नित्यस्य तव (भूरि, नाम) बहूनि नामानि (मनामहे) जानीमः ॥५॥